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( ३६ ) असे साध्वीयोंको नहीं कल्पै.
(४०) पाटाके शिरपर पागावोंका आकार होते है, असा पाटापर साधुवोंको बेठना सोना कल्पै.
(४१) साध्वीयोंको नहीं कल्पै.
(४२ ) साधुवोंको नालिका सहित तुंबडा रखना और भोगवना कल्पै.
(४३) साध्वीयोंको नहीं कल्पै. . (४४) उघाडी डंडीका राजेहरण ( कारणात् १॥ मास ) रखना और भोगवना कल्पै.
(४५) साध्वीयोंको नहीं कल्प. (४६ ) साधुवाँको डांडी संयुक्त पुंजणी रखना कल्पै. (४७ ) साध्वीयोंको नहीं कल्पै.
(४८)साधु-साध्वीयोंको आपसमें लघु नीति (पेसाब) देना लेना नहीं कल्पै. परन्तु कोइ अतिकारन हो, तो कल्यै भी. भावार्थ-किसी समय साधु एकेला हो और सादिका कारण हो, असे अवसरपर देना लेना कल्पै भी.
(४६ ) साधु साध्वीयोंको प्रथम प्रहरमे ग्रहन कीया हुवा अशनादि आहार, चरम प्रहरमे रखना नहीं कल्यै. परन्तु अगर कोइ अति कारन हो, जैसे साधु बिमार होवे और बतलाया हुवा भोजन दुसरे स्थानपर न मिले. इत्यादि अपवादमें कल्पै भी सही.