SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ ( ३६ ) असे साध्वीयोंको नहीं कल्पै. (४०) पाटाके शिरपर पागावोंका आकार होते है, असा पाटापर साधुवोंको बेठना सोना कल्पै. (४१) साध्वीयोंको नहीं कल्पै. (४२ ) साधुवोंको नालिका सहित तुंबडा रखना और भोगवना कल्पै. (४३) साध्वीयोंको नहीं कल्पै. . (४४) उघाडी डंडीका राजेहरण ( कारणात् १॥ मास ) रखना और भोगवना कल्पै. (४५) साध्वीयोंको नहीं कल्प. (४६ ) साधुवाँको डांडी संयुक्त पुंजणी रखना कल्पै. (४७ ) साध्वीयोंको नहीं कल्पै. (४८)साधु-साध्वीयोंको आपसमें लघु नीति (पेसाब) देना लेना नहीं कल्पै. परन्तु कोइ अतिकारन हो, तो कल्यै भी. भावार्थ-किसी समय साधु एकेला हो और सादिका कारण हो, असे अवसरपर देना लेना कल्पै भी. (४६ ) साधु साध्वीयोंको प्रथम प्रहरमे ग्रहन कीया हुवा अशनादि आहार, चरम प्रहरमे रखना नहीं कल्यै. परन्तु अगर कोइ अति कारन हो, जैसे साधु बिमार होवे और बतलाया हुवा भोजन दुसरे स्थानपर न मिले. इत्यादि अपवादमें कल्पै भी सही.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy