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________________ (५०) साधु-साध्वीयोंको ग्रहन कीये स्थानसे दो कोश उपरांत ले जाना अशनादि नहीं कल्पै. परन्तु अगर कोई विशेष कारण हो तो-जैसे किसी प्राचार्यादिकी वैयावच्च के लीये शीघ्रतापूर्वक जाना है. क्षुधासहित चल न सकै, रस्तेमें ग्रामादि न हो, तो दोय कोश उपरांत भी ले जा सक्ते है. (५१) साधु-साध्वीयोंको प्रथम प्रहरमे ग्रहन कीया हुवा विलेपनकी जाति चरम प्रहरमे नहीं कल्पै. परन्तु कोई विशेष कारन हो तो कल्पै. (५२ ) एवं तेल, घृत, मखन, चरची. ( ५३ ) काकण द्रव्य, लोद्र द्रव्यादि भी समझना. ( ५४ ) साधु अपने दोषका प्रायश्चित कर रहा है. अगर उस साधुको किसी स्थविर ( वृद्ध) मुनियोंकी वैयाबच्चमें भेजे, और वह स्थविर उस प्रायश्चित तप करनेवाले साधुका लाया आहार पानी करै, तो व्यवहार रखनेके लीये नाम मात्र प्रायश्चित उस स्थविरोंको भी देना चाहिये. इससे दुसरे साधुवोंको क्षोभ रहेता है. (५५) साध्वीयों गृहस्थोके वहां गौचरी जानेपर किसीने सरस आहार दीया, तो उस साध्वीयोंको उस रोज इतना ही आहार करना, अगर उस आहारसे अपनी पूरती न हुइ, ज्ञान-ध्यान ठीक न हो, तो दुसरी दफे गौचरी जाना. भावार्थ-सरस आहार आने पर प्रथम उपासरेमें आना चाहिये.
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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