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किसी गृहस्थोंने माहार बनाया हो तो उस साधुवोंको लेना नहीं कल्पै.
(१५) मध्यके २२ जिनोंके साधुवोंको प्रज्ञावंत और ऋजु ( सरल ) होनेसे कल्पै.
(१६) मध्य जिनोंके साधुवोंके लीये बनाया हुवा अशनादि बावीश तीर्थंकरोंके साधुवोंको लेना कल्पै.
(१७) परन्तु प्रथम-चरम जिनोंके साधुवोंको नहीं कल्पै.
(१८) साधु कबी औसी इच्छा करे कि मैं स्वगच्छसे नीकलके परगच्छमें जाउं, तो उस मुनिको
(१) आचार्य-गच्छनायक, (२) उपाध्याय-आगमवाचनाके दाता, (३) स्थविर-सारणा वारणा दे. अस्थिरको मधुर वचनोंसे स्थिर करे. (४) प्रवर्तक-साधुवोंको अच्छे रस्तेमें चलनेकी प्रेरणा करे. (५) गणी-जिसके समीप आचार्यने सूत्रार्थ धारण कीया हो. (६) गणधर-जो गच्छको धारण करके उसकी सार-संभाल करते हो, (७) गणविच्छेदक-जो च्यार, पांच साधुवोंको लेकर विहार करते हो. इस सात पद्वीधरोंको पुछने बिगर अन्य गच्छमें जाना नहीं कल्पै. पूछनेपर भी उक्त सातों पद्वीधर विशेष कारण जान, जानेकि आज्ञा देवे, तो अन्य गच्छमें जाना कल्पै. अगर आज्ञा नहीं देवे तो, जाना नहीं कल्पै.
( १६) गणविच्छेदक स्वगच्छको छोडके परगच्छमें