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साथमें भोजन न करना चाहिये. भावार्थ-असे अयोग्यको गच्छमें रखनेसे शासनकी हीलना होती है. दुसरे साधुवोंको भी चेपी रोग लग जाता है. वास्ते जिस समय ज्ञात हो कि तीनों दुर्गुणोंसे कोइभी दुर्गण है, तो उसे मधुर वचनों द्वारा हित शिक्षा देके अपनेसे अलग कर देना. विशेष विस्तार देखो प्रवचन सारोद्धार.
(५) अविनयवंत हो, विगइके लोलुपी हो, निरंतर कषाय करनेवाला हो, इस तीन दुर्गणोंवालोंको आगम वाचनादि ज्ञान नहीं देना चाहिये. कारण-सर्पको दुध पीलानाभी विषवृद्धिका कारण होता है.
(६) विनयवान हो, विगइका प्रतिबंधी न हो, दीर्घ कषायवाला न हो, इस तीन भव्य गुणोंवालोंको आगम ज्ञानकी वाचना देना चाहिये. कारण-वाचना देना, यह एक शासनका स्तंभ-आलंबन है.
(७) दुष्ट-जिसका हृदय मलीन हो, मूढ-जिसको हिताहितका ख्याल न हो, और कदाग्रही-इस तीनोंको बोध लगना असंभव है. ___(0) अदुष्ट, अमूढ और भद्रिक-सरल स्वभावी-इस तीनोंको प्रतिबोध देना सुसाध्य है. .. (६) साधु बीमार होनेपर तथा किसी स्थानसे गिरिते हुवेको दुसरे साधुके अभावसे उसी साधुकी संसार अवस्थाकी