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बादला या पर्वतका आडसे सूर्य नहीं दिखा, परन्तु यह जाना जाता था कि सूर्य अवश्य होगा. तथा उदय हो गया है, इस इरादासे आहार-पानी ग्रहण कीया. बादमें मालुम हुवा कि सूर्य अस्त हो गया तथा अभी उदय नहीं हुवा है, तो उस
आहारको भोगवता हो, तो मुंहका मुंहमे हाथका हाथमें और पात्रका पात्रमें रखे, परन्तु एक बिन्दु मात्र भी खावे नहीं, सबको अचित्त भूमिपर परठ देना चाहिये, परन्तु आप खावे नहीं, दुसरेको दे नहीं, अगर खबर पडने के बाद आप खावे, तथा दुसरेको देवे तो उस मुनियोंको गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आवै.
(७) एवं समर्थ शंकावा. (८) एवं असमर्थ निःशंक.
(६) एवं असमर्थ शंकावान् । भावार्थ-कोइ आचा. र्यादिक वैयावच्च के लीये शीघ्रता पूर्वक विहार कर मुनि जा रहा है. किसी ग्रामादिमे सबेरे गोचरी न मिलीथी श्यामको किसी नगरमें गया. उस समय पर्वतका आड तथा बादलमें सूर्य जानके भिक्षा ग्रहण की और सबेरे सूर्योदय पहिले तक्रादि ग्रहण करी हो, ग्रहन कर भोजन करनेको बेठने के बाद ज्ञात हुवा कि शायद सूर्योदय नहीं हुवा हो अथवा अस्त हो गया हो असा दुसरोंसे निश्चय हो गया हो तो उस मुंहका, हाथका
और पात्रका सब आहारको निर्जीव भूमिपर परठ देनेसे आज्ञाका उन्लंघन नहीं होता है.