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કર इस नदीयोंकी अन्दर पाणी बहुत रहेता है, अगर आधी जंघा प्रमाण पानी हो, कारणात् उसमें उतरणा भी पडे, तो एक पग जलमें और दुसरा पगको उंचा रखना चाहिये. दुसरा पग पाणीमें रखा जावे तब पहिलाका पग पाणीसे निकाल उंचा. रखे, जहांतक पाणीकी बुंद उस पगसे गिरनी बंध हो जाय, इस विधिसे नदी उतरनेका कल्प है. इसी माफिक कुनाला देशमें अरावंती नदी है.
(३५) तृण, तृणपुंज, पलाल, पलालपुंज, आदिसे जो मकान बना हुवा है, और उसकी अन्दर अनेक प्रकारके जीवॉकी उत्पत्ति हो, तो असा मकानमें साधु, साध्वीयोंको ठहरना नहीं कल्पै.
(३६.) अगर जीवादिरहित हो, परन्तु उभा हुवा मनुष्यके कानोंसे भी नीचा हो, असा मकानमें शीतोष्ण काल ठहरना नहीं कल्पै. कारण उभा होनेपर और क्रिया करते हर समय शिरमें लगता, मकानको नुकशानी होती है.
(३७) अगर कानोंसे उंचा हो, तो शीतोष्ण कालमें ठहरना कल्पै.
(३८) उक्त मकान मस्तक तक उंचा हो तो वहां चातुर्मास करना नहीं कल्पै.
(३६) परन्तु मस्तकसे एक हस्त परिमाण उंचा हो तो साधु साध्वीयोंको उस मकानमें चातुर्मास करना कल्पै. । इति श्री बृहत्कल्पसूत्रका चौथा उद्देशाका संक्षिप्त सार ।
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