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चलना-क्षोभ पामना-भंग करना तेरेको नहीं कल्पता है। किन्तु मैं आज तेरा धर्मसे तुजे क्षोभ करानेको भंग करानेको आया हुं। अगर तुं तेरी प्रतिज्ञाको न छोडेगा तो देख यह मेरा हाथ में नि. लोत्पल नामका तीक्ष्ण धारायुक्त खड्ग है इन्हींसे अभी तेरा खंड खंड करदूंगा जीससे तुं आर्तध्यान, रौद्रध्यान करता हुआ अभी मृत्युको प्राप्त हो जायगा।
कामदेव श्रावक पिशाचरूप देवका कटक और दारूण शब्द श्रवण कर आत्माके एक प्रदेश मात्रमें भय नहीं, त्रास नहीं, उद्वेग नहीं, क्षोभ नहीं, चलित नहीं, संभ्रांतपना नहीं लाता हुवा मौन कर अपनी प्रतिज्ञा पालन करता ही रहा ।
पिशाचरूप देवने कामदेव श्राक्कको अक्षोभीत धर्मध्यान करता हुवा देखके और भी गुस्साके साथ दो तीनवार वही वचन सुनाया। परन्तु कामदेव लगार मात्र भी क्षोभित न होकर अपने आत्मध्यानमे ही रमणता करता रहा।
मायी मिथ्यादृष्टि पिशाचरूप देवने कामदेव श्रावकपर अत्यन्त क्रोध करता हुवा उन्ही तीक्ष्ण धारावाली तलवार (खडग) से कामदेव श्रावकका खंड खंड कर दिया उस समय कामदेष श्रावकको घोर वेदना-अत्यन्त वेदना अन्य मनुष्योंसे सहन करना भी मुश्कील है एसी वेदना हुइ थी। परन्तु जिन्होंने चैतन्य और जडका स्वरूप जाना है कि मेरा चैतन्य तो सदा आनन्दमय है इन्हीकों तो किसी प्रकारको तकलीफ है नहीं और तकलीफ है इन्ही शरीरकों वह शरीर मेरा नहीं है। एसा ध्यान करनेसे जो अति वेदना हो तो भी आर्तध्यानादि दृष्ट परिणाम नहीं होते है। वीतरागके शासनका यही तो महत्त्व है।