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होगा. राजा श्रेणिक और चेलनाके गर्भका जीव एक तापसके rai कर्म उपार्जन कीयाथा वह इस भवमें उदय हुवा है। इस कथानिक सबन्धका सार यह है कि कीसीके साथ वैर मत रखो. कर्म मत बान्धो. किमधिकम् ।
एक समय राणीने यह विचार किया कि यह मेरे गर्भका जीव गर्भ में आते ही अपने पिताके उदर मांसभक्षण कीया है, तो न जाने जन्म होने से क्या अनर्थ करेंगा. इस लिये मुझे उचित है कि गर्भही में इसका विध्वंस करदुं । इसके लिये अनेक प्रयोग किया परन्तु सबके सब निष्फल हो गये । गर्भके दिन पुर्ण होने से चेलनाराणीने पुत्रको जन्म दिया। उस बखत भी चेलनाराणीने विचार किया कि यह कोई दुष्ट जीव है. जो कि गर्भ में आते ही fuare उदरका मांसभक्षण कीया था, तो न जाने बडा होनेसे कुलका क्षय करेगा या और कुच्छ करेगा. वास्ते मुझे उचित है कि इस जन्मा हुवा पुत्रको कीसी एकान्त स्थानपर ( उखरडीपर) डाल | एसा विचार कर एक दासीको बुलाके अपने पुत्रको एकान्तमें डालने की आज्ञा दे दी।
वह हुकमकी नोकर- दासी उस राजपुत्रको लेके आशोक नामकी सुकी हुइ वाडी में एकान्त जाके डालदीया । उस राजपुको भनवाडीमें डालती ही पुत्रके पुन्योदय से वह वाडी नवपल्लवित हो गइ । उसकी खबर राजाके पास आइ ।
नोट- दासीने विचारा कि में राणीके कहने से कार्य किया है परन्तु कभी राजा पुच्छेगा तो में क्या जवाब दूंगी. वास्ते यह सब हाल राजासे अर्ज करदेना चाहिये । दासीने सब हाल राजासे कहा. राजाने सुना । फिर
राजा श्रेणिक अशोकवाडीमें आया. वहांपर देखा जाये तो