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। श्रीरत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पुष्प नं. ६२ ।
। श्रीककसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः ।
शीघ्रबोध नाग १७वां.
श्रीबृहत्कल्पसूत्रका संक्षिप्त सार.
( उद्देशा ६ छे.) प्रथम १ उद्देशा-इस उद्देशामें मुख्य साधु साध्वीयोंका आचारकल्प है । जो कर्मबंधके हेतु और संयमको बाध करनेवाले पदार्थ है, उसको निषेध करते हुवे शास्त्रकारोंने " नो कप्पइ" अथात् नहि कल्पते, और संयमके जो साधक पदार्थ है, उसको 'कप्पइ" अथात् यह कल्पते है। वह दोनो प्रकार 'नो कप्पइ" "कप्पइ" इसी उद्देशामें कहेंगे । यथाः-- - (१) नहि कल्पै-साधु साध्वीयोंको कच्चा तालवृक्षका फल ग्रहण करना न कल्पै । भावार्थ-यहां मूलसूत्रमें तालवृक्षका फल कहा है यह किसी देश विशेषका है। क्यों कि भिन्न भिन्न देशमें भिन्न २ भाषा होती है । एक देशमें एक वृक्षका अमुक नाम है, तो दुसरे देशमें उसी वृक्षका अन्यही