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वना पूर्ववत् । अगर दुसरा मकानकी अप्राप्ति होवे, तो वहां लडु आदि एक तर्फ रखा हुवा हो, राशि आदि करी हुइ हो तो शीतोष्ण कालमें साधुको एक मास और साध्वीयोंको दोय मास रहेना कल्पे । अगर कोठेमें रखके तालेसे बंध करके पका बंदोबस्त किया हो वहांपर चातुर्मास करना भी कल्पे. इसमें भी लाभालाभका कारन और लोगोंकी भावनाका बिचार विचक्षण मुनियोंको पेस्तर करना चाहिये।
(७) साध्वीयोंको ११) पन्थी लोग उतरते हो एसा मुसाफिरखानेमें, (२) वंशादिकी झाडीमें, (३) वृक्षके नीचे,
और (४) चोतर्फ खुला हो ऐसा मकानमें रहेना नहीं कल्पै । कारन-उक्त स्थान पर शीलादिकी रक्षा कभी कभी मुश्कीलसे होती है।
(८) उक्त च्यारों स्थान पर साधुओंको रहेना कल्प।
(8) मकानके दाता शय्यातर कहा जाता । ऐसा शय्यातरके वहांका आहार पाणी साधु साध्वीयोंको लेना नहीं कल्पै । अगर शय्यातरके वहां भोजनादि तैयार हुवा है उन्होने अपने वहांसे किसी दुसरे सजनको देने के लिये भेजा नहीं है और सजनने लिया भी नहीं है, केवल शय्यातर एक पात्रमें रख भेजनेका विचार किया है, वह भोजन साधु साध्वीयोंको . लेना नहीं कल्पै । कारन-वह अभी तक शय्यातरका ही है ।
(१०) उक्त आहार शय्यातरने अपने वहांसे सज्जनके