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दूसरा उद्देशा.
(१) साधु साध्वी जिस मकान में ठहरना चाहते है. उस मकान में शालि आदि धान इधर उधर पसरा हुवा हो, जहांपर पांव रखनेका स्थान न हो, वहांपर हाथ की रेखा सुझे इतना बखत भी नहीं ठरना चाहिये। अगर वह धानका एक तर्फ ढंग किया हो, उसपर राख डालके मुद्रित किया गया हो, कपडेसे ढका हुवा हो, तो साधुको एक मास और साध्वीको दोय मास ठहरना कल्पैः परन्तु चातुर्मास ठहरना नहीं कल्पै । अगर उस धानको किसी कोठेमें डाला हो, ताला कुंचीसे जाबता किया हो, तो चातुर्मास रहेना भी कल्पै । भावार्थ -गृहस्थका धानादि अगर कोइ चोर ले जाता हो तो भी उसको रोक-टोक करना साधुको कल्पे नहीं । गृहस्थको नुकशान होनेसे साधुकी प्रतीति हो और दुसरी दफे मकान मिलना दुष्कर होता है ।
प्रश्न- जो ऐसा हो तो साधु एक मास कैसे ठहर सकता है १ ।
उत्तर - आचारांगसूत्र में ऐसे मकान में ठहरनेकी बिल -
१ गृहस्थ लोग अपने उपभोगके लीये बनाया हुवा मकान में गृहस्थोंकी लेके साधु ठहर सकता है। उस मकानको शास्त्रकारोंने उपासरा ( उपाश्रय ) कहा
है
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