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एकेला साधु कितना बख्त और कहांपर जाते हैं इत्यादि । वास्ते चाहिये कि आप सहित दो या तीन साधुवोंको साथ जाना । कारन - दूसरेकी लज्जा से भी दोष लगाते हुवे रुक जाते है। तथा एक साधुको राजादिके मनुष्य दखल करता हो, तो दूसरा साधु स्थानपर जाके गुर्वादिको इतल्ला कर सकता है।
(५०) इसी माफिक साध्वीयां दोय हो तो भी नहीं कल्पे, परन्तु आप सहित तीन च्यार साध्वीयोंको साथमें रात्रि या वैकालमें जाना चाहिये । इसीसे अपना आचार (ब्रह्मचर्य) व्रत पालन हो सकता है ।
( ५१ ) साधुसाध्वीयों को पूर्व दिशामें अंगदेश चंपा - नगरी, तथा राजगृह नगर, दक्षिण दिशा में कोसम्बी नगरी, पश्चिम दिशामें स्थूणा नगरी, और उत्तर दिशामें कुणाला नगरी, च्यार दिशा में इस मर्यादा पूर्वक विहार करना कल्यै । कारन - यहांपर प्रायः आर्य मनुष्यों का निवास है. इन्हके सिवा
नार्य लोगोंका रहेना है, वहां जानेसे ज्ञानादि उत्तम गुनोंका घात होता है, अर्थात् जहां पर जानेसे ज्ञानादिकी हानि होती हो, वहां जाने के लीये मना है । अगर उपकारका कारन हो, ज्ञानादि गुणकी वृद्धि हो, आप परीषह सहन करने में मजबूत हो, विद्याका चमत्कार हो, अन्य मिथ्यात्वी जीवोंको बोध देने में समर्थ हो, शासनकी प्रभावना होती हो, अपना चरित्रमें दोष न लगता हो, वहां पर विहार करना योग्य है ।
। इतिश्री बृहत्कल्पसूत्रमें प्रथम उद्देशाका संक्षिप्त सार ।
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