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( २२ ) साधु साध्वीयोंको गृहस्थके घरपे जाके चार पांच गाथ (गाथा) विस्तार सहित कहना नहीं कल्पै । अगर कारण हो तो संक्षेपसे एक गाथा, एक प्रश्नका उत्तर एक वागरणा (संक्षेपार्थ) कहेना, सो भी उभा रहके कहेना, परन्तु गृहस्थोंके घर पर बैठके नहीं कहेना । कारण-मुनिधर्म है सो निःस्पृही हैं। अगर एकके घरपे धर्म सुनाया जाय तो दुसरेके वहां जाना पडेगा, नहीं जावे तो राग द्वेषकी वृद्धि होगी। वास्ते अपने स्थान पर आये हुवेको यथासमय धर्मदेशना देनी ही कल्पै ।
(२३) एवं पांच महाव्रत पचवीश भावना संयुक्त वि. स्तारसे नहीं कहेना । अगर कारन हो तो पूर्ववत् । एक गाथा एक वागरणा कहना सो भी खडे खडे ।
(२४) साधु साध्वीयोंने जो गृहस्थके वहाँसे शय्या (पाट पाटा ), संस्तारक, (तृणादि ) वापरनेके लिये लाया हो, उसको वापिस दिया बिना विहार करना नहीं कल्पै । एवं उस पाटो पर जीवोत्पत्तिके कारनसे लेप लगाया हो, तो उस लेपको उतारे बिना देना नहीं कल्पै । अगर जीव पड गया हो, तो जीव सहित देना भी नहीं कल्पै । (२६) अगर उस पाटादिको चोर ले गया हो, तो साधुको उसकी तलास करनी चाहिये, तलास करने पर भी मिल जावे, तो गृहस्थसे कहके दुसरी बार आज्ञा लेनी, अगर नहीं मिले तो गृहस्थसे कह देना कि-'तुमारा पाटादि चौर ले गया हमने तलास की परन्तु क्या करे मिला नहीं । एसा कहके दुसरा पाटादिकी