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प्रतिलेखन करी हो, तो वह दुकानों रात्रिमें ग्रहन कर सुनेके काममें ले सकते है।
(४६ ) साधु साध्वीयोंको रात्रिसमय और वैकालिक समय वस्त्र, पात्र, कम्बल, रजोहरन लेना नहीं कल्पै । परन्तु कोइ निशाचर साधुवाँके वस्त्रादि चोरके ले गया हो, उसको धोया हो, रंगा हो, साफ गडीबंध करा हो, धूप दीया हो, फिर उसके दिलमें यह विचार हो कि 'साधुवोंका वस्त्रादि नहीं रखना चाहिये' एसा इरादासे वह दाक्षिण्यका मारा दिनको नहीं आता हुवा रात्रिमें आके कपडा वापिस देवे तो मुनि रात्रि में भी ले सकता है । फिर वह वस्त्रादि किसी भी काममें क्यों न लो, परन्तु असंयममें नहीं जाने देना। वास्ते यह कारनसे वो रात्रिमें भी ले सके।
(४७) साधु साध्वीको रात्रिमें विहार करना नहीं कल्पै । कारन-रात्रिमें इर्यासमितिका भंग होता है, जीवादिकी रक्षा नहीं होती है।
. (४८) साधु साध्वीको किसी प्रामादिमें जिमणवार सुनके-जानके उस गामकी तर्फ विहार करना नहीं कल्पै । इससे लोलुपताकी वृद्धि, लोकापवाद और लघुता होती है ।
(४९) साधुवोंको रात्रि समय और वैकालिक समयपर स्थाण्डिल या मात्रा करनेको जाना हो तो एकलेको जाना नहीं कल्प। कारन-राजादि कोइ साधुको दखल करे, या