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भाजन अन्दरसे लीपा हुवा, साधुवों को रखना कल्पे नहीं । कारण-पिसाब करते बखत चित्तवृत्ति मलिन न हो।
(१८) उक्त भाजन साध्वीयोंको रखना कल्पै ।
(१६) उपरसे सुपेतादिसे लिप्त किया हुवा नालीका प्राकार समान मात्राका भाजन साध्वीयोंको रखना कल्पे नहीं। भावना पूर्ववत् ।
(२०) उक्त मात्राका भाजन साधुओंको कल्प।
(२१) साधु साध्वीयोंको वस्त्रकी चलमीली अर्थात् आहारादि करते समय मुनिको वो गुप्त स्थानमें करना चाहिये। अगर ऐसा मकान न मिले तो एक वस्त्रका पडदा बांधके आहार करना चाहिये । उस वस्त्रको शास्त्रकारोंने चलमील
(२२) साधु, साध्वीयोंको पाणीके स्थान जैसे नदी, तलाव, कुवा, कुण्ड, पाणीकी पोवाआदि स्थानपर बैठके नीचे लिख हुवे कार्य नहीं करना । कारण-इसीसे लोगोंको शंका उत्पन्न होती है कि साधु वहांपर कचा पानीका उपयोग करते होंगे? इत्यादि ।
(१) मलमूत्र (टटी पेसाब ) वहांपर करना, (२) बैठना, (३) उभा रहेना, (४) सोना. (५) निद्रा लेना, (६) विशेष निद्रा लेना, (७) अशनादि च्यार प्रकारके आहार करना, (११) स्वाध्याय करना, (१२) ध्यान करना, (१३)