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(११) निगम-जहांपर प्रायः वैश्य लोगोंकी अधिक
वस्ती हो। (१२) राजधानी-जहांपर खास करके राजाकी राजधानी हो। (१३) संवहम-जहांपर प्रायः किरसानादिककी वस्ती हो। (१४) घोषांसि-जहांपर प्रायः घोषी लोगों वस्ते हो । (१५) एशीयां-जहांपर आये गये मुसाफिर ठहरतें हैं। : (१६) पुडभोय-जहां खेतीवाडीके लीये अन्य ग्रामोंसे लोंगों
आकरके वास करते हो।
भावार्थ-एक माससे अधिक रहनेसें गृहस्थ लोगोंका अधिक परिचय होता है और जिससे राग द्वेषकी वृद्धि होती हैं। सुखशीलीयापना बढ़ जाता हैं । वास्ते तन्दुरस्तीके कारन बिना मुनिकों शीतोष्ण कालमें एक माससे अधिक नहि ठहरना।
__ (७) पूर्वोक्त १६ गढ, कोट शहरपनासें संयुक्त हो । कोटके बहार पुरा आदि अन्य वस्ती हो, ऐसे स्थानमें साधुको शीतोष्ण कालमें दोय मास रहेना कल्प, एक मास कोट की अंदर और एक मास कोटकी ब्हार; परंतु एक मास अन्दर रहे वहां भिक्षा अन्दर करे, और बहार रहे तब भिक्षा बहारकी करे । अगर अन्दर एक मास रहेते हुवे एक रोजही बहारकी भिक्षा करी हो, तो अन्दर और बहार दोनो स्थानमें एकही मास रहेना कल्पनीय है । अगर अन्दर एक मास रहके बहार