________________
१६७ भूता कुमारी देशना श्रवण कर हर्ष संतुष्ट हो बोलीकि हे भ गवान आपका केहना सत्य है सुख और दुःख पुर्वकृत कर्मोकाही फल है परन्तु अपने कर्म क्षय करने का भी उपाय अच्छा वतलाया है मैं उस रहस्तेकों सचे दीलसे श्रद्धा है मुझे प्रतितभी आइ है आपका केहना मेरे अन्तर आत्मामें रूच भी गया है हे करूणा सिन्धु! मैं मेरे मातापितावोंको पुच्छके आपकि समिप दीक्षा ग्रहन करुंगा। भगवानने फरमाया — जहा सुखम् ' भूता भगवानको वन्दन नमस्कार कर अपने रथ परारूढ हो अपने घरपर आइ । मातापितावोंसे अर्ज करीकि मैं आज भगवान कि अमृतमय देशना सुन संसारसे भयभ्रात हुइ हु अगर आप आज्ञा देवे तो मैं भगवानके पास दीक्षा ग्रहन कर मेरी आत्माका कल्याण करू? मातापितावोंने कहाकि खुशीसे दीक्षा लो। ____ नोट-संसारकी केसी स्वार्थवृति होती है इस पुत्रीके साथ मातापिताका स्वार्थ नही था बल्के इसीकों कोइ परणताभी नही था. इस हालतमे खुशीसे आज्ञा देदोथी।
भूताका दीक्षा लेनेका दील होते ही मातापितावोंने (लग्नके वदलेमे) वडा भारी दीक्षा महोत्सवकर हजार मनुष्य उठावे एसी सेविकाके अन्दर भूताको बेठा कर वडाही आडम्बरके साथ भगवानके पास आये और भगवानसे वन्दन कर अर्ज करीकि है प्रभु यह मेरी पुत्री आपकी देशना सुन संसारसे भयभ्रात हो आपके पास दीक्षा लेना चाहति है हे दयालु! मैं आपकों शिष्यणी रूपभिक्षा देता हु आप इसे स्वीकार करावे. .. भूताने अपने वस्त्र भूषण अपने मातापिताकोंदे मुनिवेषको धारणकर भगवान के समिप आके नम्रता पुर्वक अर्ज करी हे भगवान संसारके अन्दर अलीता (जन्म) पलिता (मृत्यु) का म.