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प्रस्तावना.
इस समय जैनशासन में प्रायः ४५ आगम माने जाते हैं. यथा-ग्यारह अंग, बारह उपांग, दश पयन्ना, छे छेद, चार मूल, नंदी और अनुयोग द्वार एवं ४५.
यहां पर हम छे छेद सूत्रों के विषय में ही कुछ लिखना चाहते है. लघु निशिथ, महानिशिथ, और पंचकल्प इन तीन सूत्रों के मूल कर्ता पंचम गणधर सौधर्मस्वामी हैं. तथा वृहत्कल्प, व्यवहार
और दशा श्रुतस्कंध इन तीन सूत्रों के मूल कर्ता भद्रबाहु स्वामी हैं. इन सूत्रों पर नियुक्ति, भाष्य, बृहत्भाष्य, चूर्णि, अवचूरी और टिप्पनादि भिन्न २ आचार्योंने रचे हैं.
इन छ छेदोंमें प्रायः साधु, साध्वीयोंके आचार, गोचार, कल्प, क्रिया और कायदादि मार्गोका प्रतिपादन किया है. इसके साथ २ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, उत्सर्ग, अपवादादि मार्गोकाभी समयानुसार निरुपण किया है. और इन छओं छेदोंके पठन पाठनका अधिकार उन्हींको है जो गुरुगम्यता पूर्वक गंभीर शैलीसे स्याद्वादमार्गको अच्छी तरहसे जाने हुवे है और गीतार्थ महात्मा है और वेही अपने शिष्योंको योग्यता पूर्वक अध्ययन व पठन पाठन करवाते है। ___भगवान् वीरप्रभुका हुकम है कि जबतक आचारांग और लघुनिशिथ सूत्रोंका जानकार न हो तबतक उन मुनिराजोंको आगेवान