________________
होके विहार करना, भिक्षाटन करना और व्याख्यान देना नहीं . कल्पंता. __आचारांग, लघुनिशिथ सूत्रसे अनभिज्ञ साधु यदि पूर्वोक्त कार्य करे तो उसे चतुर्मासिक प्रायश्चित्त होता है. और गच्छनायक आचार्यादि उक्त अज्ञात साधुवोंको पूर्वोक्त कार्योंके विषय आज्ञा भी न दे. और यदि दे तो उन आज्ञा देनेवालोंकोभी चतुर्मासिक प्रायश्चित होता है. इसलिये सर्व साधु माध्वियोंको चाहिये कि वे योग्यता पूर्वक गुरुगमतासे इन छे छेदोंका अवश्य पठन पाठन करें, विना इनके अध्ययन किये साधु मार्गका यथावत् पालन भी नहीं कर सक्ने. कारण जबतक जिस वस्तुका यथावत् ज्ञान न हो उसका पालन भी ठीक ठीक कैसे हो सक्ता है?
अगर कोइ शीथिलाचारी खुद खछन्दताको विकार कर अपने माधु साध्वियोंको आचारके अन्धकारमें रख अपनी मन मानी प्रवृत्ति करना चाहे, उनको यह कहना आसान होगा कि साधु साध्वियोंको छेदसूत्र न पढाने चाहिये. उनसे यह पूछा जाय कि छेदसूत्र है किस लिये ? अगर ऐमाही होता तो चौरासी आगमोंमेंसे पैंतालीश आगमका पठन पाठन न रखकर उन चालीसका ही रख देते तो क्या हरन थी?
अब सवाल यह रहा कि छेद सूत्रोंमें कइ वातें ऐसी अपवाद है कि वह अल्पज्ञोंको नही पढाइ जाती ( समाधान ) मूल सूत्रोंमे तो ऐसी कोइभी अपवादकी वात नहीं है कि जो साधुवोंको न पढाई