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सूत्रों में ऐसा भी पाठ दिखाई देता है कि भगवान् वीरप्रभुने वहुतसे साधु साध्वि, श्रावक, श्राविका, देव और देवांगनाओंकी परिषदामें इन सूत्रोंका व्याख्यान किया है अगर ऐसा है तो फिर दूसरे पढेंगे यह भ्रांति ही क्यों होनी चाहिये ?
छेदसूत्रों में जैसे विशेषतासे साधुवोंके आचारका प्रतिपादन है. वैसे सामान्यतासे श्रावकों के आचारका भी व्याख्यान है. श्रावकों के सम्यक्त्व प्रतिपादनका अधिकार जैसा छेदसूत्रों में है, वैसा सायद ही दूसरे सूत्रोंमें होगा और श्रावकोंकी ग्यारह प्रतिमाका सविस्तार तथा गुरुकी तेतीस आशातना टालना और किसी आचार्यको पदवीका देना वह योग्य न होनेपर पछिका छोडाना तथा आलोचना करवाना इत्यादि आचार छेदसूत्रों में है. इसलिये श्रावकभी सुननेके अधिकारी हो सकते हैं.
अब तीसरा सवाल यह रहा की श्रावकलोक मूल सूत्र वांके अधिकारी है या नहीं ? इस विषय में हम इतना ही कहेंगे कि हम इन छेद सूत्रों की केवल भाषाही लिखना चाहते हैं. और भाषाका अधिकारी हरएक मनुष्य हो सक्ता है.
प्रसंगतः इन छेदसूत्रोंका कितनाक विभाग भिन्न २ पुस्तकोंद्वारा प्रकाशित हो चुका है. जैसे सेनप्रश्न, हीरप्रश्न, प्रश्नोत्तरमाला, प्रश्नोत्तर चिन्तामणी, विशेषशतक, गणधर सार्द्धशतक और प्रश्नोत्तरसाईशतकादि ग्रन्थोंमें आवश्यकता होनेपर इन छेदसूत्रोंकें कार्तपय मूलपाठोंको उत कर उनका शब्दार्थ और विस्तारार्थसें उल्लेख किया है.