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समिप श्रावकव्रत ग्रहनकर भगवानको वन्दन नमस्कार कर अपने स्थानपर गमन करता हुवा।
तत्पश्चात् पार्श्वप्रभु भी बनारसी नगरीके उद्यानसे अन्य जनपद देशमें विहार कीया
भगवान पार्श्वप्रभु विहार करने के बाद में कीतनेही समय बनारसी नगरीमें साधुवांका आगमन नही होनेसे सोमल ब्राह्मणकी श्रद्धा शीतल होती रहा, आखिर यह नतीजा हुवाकि पूर्वकी माफिक ( सम्यक्त्वका त्यागकर ) मिथ्यात्वी बन गया।
एक समय कि बात है कि सोमलको रात्रीकि बखत कुटम्बध्यान करते हुवे एसा विचार हुवा कि मैं इस बनारसी नगरीके अन्दर पवित्र ब्राह्मणकुलमें जन्म लिया है विवाह-सादी करी है मैरे पुत्रभि हुवा है मैं वेद पुराणादिका पठनपाठनभि कीया है अश्वमेदादि पशु होमके यज्ञभि कराया है। वृद्ध ब्राह्मणोंको दक्षणादेके यज्ञस्थंभ भि रोपा है इत्यादि बहुतसे अच्छे अच्छे कार्य किया है अबीभि सूर्योदय होनेपर इस बनारसी नगरीके बाहार आम्रादि अनेक जातिके वृक्ष तथा लतावो पुष्प फलादिवाला सुन्दर बगेचा बनाके नामम्बरीकरू । एसा विचारकर सू. र्योदय क्रमसर एसाही कीया अर्थात् बगेचा तैयार करवायके उस्की वृद्धि के लिये. संरक्षण करते हुवे, वह बगेचा स्वल्पही समयमै वृक्ष लता पुष्प फलकर अच्छा मनोहर बनगया । जिससे सोमल ब्रह्मणकि दुनियांमे तारीफ होने लग गइ । तत्पश्चात सोमलब्राह्मण एक समय रात्रीमे कुटम्ब चितवन करताहवाको एसाविचार हुवा कि मैंने बहुतसे अच्छे अच्छे काम करलिया है यावत् जन्मस लेके वगेचे तक । अब मुझे उचित है कि कल सूर्योदय होतेही बहुतसे तापसो संबन्धी भंडोपकरण बनवायके बहुतसे प्रकारका अशनादि भोजन वनवाके न्यातजातके लोकोंको भो