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रोज आतापनाकि भूमिसे निचा उतरणा वागलवस्त्र पहेरके अपनि कुटी (जुपडी ) से वांसकि कावड लेना पूर्वदिशोके मालक सोमनामके दिगपालकि आज्ञा लेना कि हे देव यह सोमल महानऋषि अगर तुमारी दिशामे जोकुच्छ कन्दमूलादि ग्रहन करे तो आज्ञा है । एसा कहके पूर्व दिशामे जाके वह कन्दमूलादिसे कावड भरके अपनि कुटीपे आना कावड वहांपर रख डाभका तृण उसके उपर रखे । एक डाभका तृण लेके गंगानदीपर जाना वहांपर जलमन्जन, जलाभिशेक, जलक्रीडाकर परमसूचि होके, जलकलस भर, उसपर डाभतृण रखके पीच्छा अपनि कुटीपर आना। वहांपर एक वेलु रेतकी वेदिका बनाना, अरण्यके काष्टसे अग्नि प्रज्वलित करना समाधिके लकडी प्रक्षेप करना अग्निके दक्षिणपासे दंडकमंडलादि सात उपकरण रखना, फीर आहुती देताहुआ घृतमधु तंदुल आदिका होम करना. इत्यादि प्रर्थाना करताहुवा बलीदान देनेके बाद वह कन्दमूलादिका भोजन करना एसा विचार सोमलने रात्री समय किया. जेमा विचार कियाथा वेसाहि सूर्योदयहोतेही आप तापसी दीक्षालेली छठ छठ पारणा प्रारंभ करदीया । प्रथम छठके पारणा सब पूर्व वताइहुइ क्रियाकर फीर छठका नियमकर आतापना लेने लगगया, जब दुसरा छठका पारणा आया तब वहही क्रिया करी परन्तु वह दक्षिण दिशा यमलोकपाल कि आज्ञा लीथी । इसी माफीक तीसरे पारणे परन्तु पश्चिमदिशा वरूण लोकपालकी आज्ञा और चोथे पारणे उत्तरदिशा कुबेरदिगपालकि आज्ञा लीथी, इसीमाफीक पूर्वादि च्यारों दिशीम क्रमासर पारणा करताहुवा. मोमल माहणऋषि विहार करता था।
एक समय कि बात है कि सोमल माहणभृषि रात्री समय में अनित्य जागृणा करते हुवेको एसा विचार उत्पन्न हुवा कि मैं बनारसी नगरीके अच्छे ब्राह्मणकुल में जन्म पाके सब अच्छे काम