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रक्षकदेव, तीन परिषदाके देव, च्यार महत्तरीक देवीयों और भि बहुपुत्तीया वैमानवासी देव देवीयोंके वृन्दसे परिवृत बहुपुत्तीया नामकि देवी. सौधर्म देवलोकके बहुपुत्तीय वैमानकी सौधर्मी सभाके अन्दर नाना प्रकारके गीतग्यान नाटकादि देवसंबन्धी सुख भोगव रही थी, अन्यदा अवधिज्ञानसे आप जम्बुद्विपके भरतक्षेत्र राजग्रहनगरका गुणशीलोचानमें भगवान वीरप्रभुको विराजमान देख, हर्ष-संतोष को प्राप्त हो सिंहासनसे उ. तर सात आठ कदम सन्मुख जाके वन्दन नमस्कार कर बोली कि, हे भगवान! आप वहांपर विराजते है. मैं यहांपर उपस्थित हो आपको वन्दन करती हूं आप सर्वज्ञ है मेरी वन्दन स्वीकार करावे ।
बहुपुत्तीयादेवीने भगवन्तको वंदनकी तैयारी जेसे सूरियाभदेवने करीथी इसी माफीक करी । अपने अनुचर देवोंको आज्ञा दि कि तुम भगवानके पास जाओ हमारा नाम गौत्र सुनाके वन्दन नमस्कार करके एक जोजन परिमाणका मंडला तैयार करो. जिसमे साफकर सुगन्धी जल पुष्प धूप आदिसे देव आने योग्य बनावों. देव आज्ञा स्वीकारकर वहां गये और कहनेके माफीक सब कार्यकर वापीस आके आज्ञा सुप्रत कर दी.
बहुपुत्तीयादेवी एकहजार जोजनका वैमान बनायके अपने सब परिवारवाले देवता देवोयोंको साथ ले भगवानके पास आइ. भगवानको वन्दन नमस्कारकर सेवा करने लगी.
भगवानने उस बारह प्रकारको परिषदाको विचित्र प्रकारका धर्म सुनाया। देशना सुन लोकोंने यथाशक्ति व्रतप्रत्याख्यान • 'कर अपने अपने स्थान जानेकी तैयारी करी ।
बहुपुत्तीयादेवी भगवानसे धर्म सुन भगवानको वन्दन नम