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(१) हमारे यात्रा-जो कि तप नियम संयम स्वध्याय ध्यान आवश्यकादि के अन्दर योगोंका व्यापार यत्न पुर्वक करना यह यात्रा है । यहां आदि शब्द में औरभी बोल समावेश हो सकते हैं।
( २ ) जपनि हमारे दोय प्रकारकि है (१) इन्द्रियापेक्षा (२) नोइन्द्रियापेक्षा । जिसमें इन्द्रियापेक्षाका पांच भेद है (१) श्रोत्रेन्द्रिय (२) चक्षुइन्द्रिय (३) घ्राणेन्द्रिय (४) रसेन्द्रिय (५ ) स्पर्शेन्द्रिय यह पांचो इन्द्रिय स्व स्व विषयमें प्रवृत्ति करती हुइको ज्ञानके जरिये अपने कब्जे कर लेना इसको इन्द्रिय ज. पनि कहते है, और क्रोध मान माया लोभ उच्छेद हो गया है उसकि उदिरणा नही होती है अर्थात् इस इन्द्रियं ओर कषाय रूपी योधोकों हम जीतलिये है।
(३) अव्याबाध ? जे वायु पित कफ सन्निपात आदि सर्व रोग क्षय तथा उपसम है किन्तु उदिरणा नहीं है।
(४) फासुक विहार । जहां आराम उधान देवकुल सभा पाणी वीगेरे के पर्व, जहां नि नपुंसक पशु आदि नहो एसी वस्ती हो वह हमारे फासुक विहार है ।
(प्र०) हे भगवान ? सरसव आपके भक्षण करणे योग्य है या अभक्ष है ?
(उ०) हे सोमल ? सरसव भक्षभी है तथा अभक्ष भी है। ( प्र०) हे भगवान! क्या कारण है ?
( उ०) हे सोमल ? सोमलको विशेष प्रतितिके लिये कहते है कि तुमारे ब्राह्मणोंके न्यायशास्त्र में सरसव दो प्रकारके है (१) मित्र सरसवा (२) धान्य सरसवा । जिसमें मित्र सरसवाका तीन भेद है (१) साथमें जन्मा (२) साथमे वृद्धिहुइ (३) साथमें धूलादिमें खेलना । वह तीन हमारे श्रमण निग्रन्थोंको अभक्ष है और