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एकान्त डालनेसे कुर्कटने अंगुली काटडाली थी, वास्ते इस कुमारका नाम " कोणक " दीया था. . .. क्रमसर वृद्धि होते हुवेके अनेक महोत्सव करते हुवे. युवक भवस्था होनेपर आठ राजकन्यावोंके साथ विवाह कर दिये, मावत् मनुष्य संबन्धी कामभोग भोगवता हुवा सुखपूर्वक काल निर्गमन करने लगा. - एक समय कोणककुमारके दिलमें यह विचार हुवा कि श्रेणिकराजाके मोजुदगीमें मैं स्वयं राज नहीं करसक्ता हुं, वास्ते कोई मोका पाके श्रेणिकराजाको निवडबन्धन कर मैं स्वयं राज्याभिषेक करवाके राज करता हुवा विचरं । केह दिन इस बातकी कोशीष करी, परन्तु एसा अवसर ही नहीं बना। तब कोणकने काली आदि दश कुमारोंको बुलवायके अपने दीलका विचार सुनाके कहा कि अगर तुम दशो भाइ हमारी मददमें रहो तो में अपने राजका इग्यारा भाग कर एक भाग मैं रखुंगा और दश भाग तुम दशो भाइयोंको भेंट दूंगा। दशो भाइयोंने भी राजके लोभमें आके इस बातको स्वीकार कर कोणककी मददमें हो गये। “परिग्रह दुनियोंमें पापका मूल कारण है परिग्रहके लिये केसे केसे अनर्थ किये जाते है." . एक समय कोणकने श्रेणिकराजाको पकड निवडबन्धन बांधके पिंजरे में बन्ध कर दिया, और आप राज्याभिषेक करवाके स्वयं राजा बन गया. एक दिन आप स्नानमन्जन कर अच्छे वस्त्राभूषण धारण कर अपनी माता चेलनाराणीके चरण ग्रहन करनेको गया था. राणी चेलनाने कोणकका कुच्छ भी सत्कार या आशिर्वाद नहीं दिया। इसपर कोणक बोला कि हे माता! आज तेरे पुत्रको राज प्राप्त हुवा है तो तेरेको हर्ष क्यों नहीं