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तत्काल जन्मा हुवा राजपुत्र एकान्त स्थानमें पडा है, देखतेही राजा बहुत गुस्से हुवा, उस पुत्रको लेके राणी चेलनाके पास आया. राणी चेलनाका तिरस्कार करता हुवा राजाने कहा कि हे देवी! यह तुमारे पहला ही पहले पुत्र हुवा है, इसका अनुक्रमे अच्छी तरहसे संरक्षण करो. राणी चेलना लज्जित होके राजाके वचनोंको सविनय स्वीकार कर अपने शिरपे चढाये और राजा श्रेणिकके हाथसे अपने पुत्रको ग्रहन कर पालन करने लगी।
जब राजपुत्रको एकान्त डालाथा, उस समय कुमारकी एक अंगुली कुर्कुटने काटडाली थी. उसीमें रौद्रविकार होके रद हो गह. उस्के मारा वह बालक रौद्र शब्दसे रूदन कर रहा था. राणीने राजाके कहनेसे पुत्रको स्वीकार कीया था। परन्तु अन्द रसे तो वह भी व्रती थी. जब पुत्रका रूदन शब्द सुन खुद राजा श्रेणिकपत्रके पास आके उस सडे हुवे रौद्रको अपने मुहमे अंगुलीसे चुस चुसके बाहर डालता था. जब कम वेदना होनेसे वह पुत्र स्वल्प देर चुप रहता था और फीर सदन करने लगजाता था. इस माफीक राजा रातभर उस पुत्रका पालन करने में खुबही प्रयत्न किया था।
नोट-पाठकवर्गको ध्यान रखना चाहिये कि मातापिताचौका कितना उपकार है और वह बालककी कितनी हिफाजत
रखते है।
उस बालकको तीजे दिन चन्द्र-सूर्यके दर्शन कराये, छठे दिन रात्रिजाग्रन किया, इग्यारमे दिन असूचि कर्म दूर किया, बारहवें दिन असनादि बनायके न्यात-जातवालोंको बुलायके उस कुमारका गुणनिष्पन्न नाम जोकी इस बालकको जन्मसमय