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असर हुबा कि भगवानका पूर्ण भक्त बन गया. उपपातिक सूत्र में पसा उल्लेख है कि कोणक राजाकों एसा नियम था कि जबतक भगवान कहां विराजते है उसका निर्णय नही हो वहांतक मुंहपे अन्न जलभी नही लेता था. अर्थात् प्रतिदिन भगवानकि खबर मंगवाके ही भोजन करता था। जब भगवान चम्पा नगरी पधारतेथे तब वडा ही आडम्बरसे भगवानकों वन्दन करनेकों जाता था । इत्यादि पुर्ण भक्तिवान था। वन्दनाधिकार में जहां तहां कोणक राजाकि औपमा दि जाती है. इसका सविस्तार व्याख्यान उवषाइ सूत्र में है। ___ अन्तिम अवस्था में कोणक राजा कृतव्य रत्नोंसे आप चक्रवर्ति हो देश साधन करनेकों गया था तमस्रप्रभा गुफाके पास जाके दरवाजा खोलनेकों दंडरत्नसे कीमाड खोलने लगा. उस बखत देवतापोंने कहा कि बारह चक्रवर्ति हो गया है. तुम पीच्छे हटजावों नही तो यहां कोइ उपद्रव होगा. परन्तु भवितव्यताके आधिन हो कोणकने वह बात नही मांनी तब अन्दरसे अग्निकि जाला निकली जीससे कोणक वहां ही कालकर छठी तमःप्रभा नरकमे जा पहुंचा। . एक स्थलपर एमाभि उल्लेख है कि कोणकका जीव चौदा भव कर मोक्ष जावेगा तत्व केवली गम्य ।
प्रसंगोपात संबंध समाप्तं । इति श्रीनिरयावलिकामूत्र संक्षिप्त सार समाप्तम् ।
. १ कोणक १६ वर्ष कि अवस्थामें राजगादी बैठाथा ३६ वर्षो कि सर्व आयुष्य थी। एसा उल्लेख कथामें है।