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(२) अध्ययन दुसरा कामदेव श्रावकाधिकार ।
.. चम्पानगरी पुर्णभद्र उद्यान जयशत्रुराजा, कामदेव गाथापति जीसके भद्राभार्या, अठारा क्रोड सोनैयाका द्रव्य-जिसमें छ क्रोड धरतीमें, छ क्रोडका व्यापार, छे क्रोडकी घरविक्री और छ वर्ग अर्थात् साठ हजार गौ (गायों) यावत् आनन्दकी माफीक थी-भगवान वीरप्रभुका पधारना हुवा, राजा और नगरके लोक धन्दनको गये कामदेवभी गया । भगवानने देशना दी। कामदेवने आनन्दकी माफीक स्वइच्छा मर्यादा रखके सम्यक्त्व मूल बारह व्रत धारण किया । यावत् अपने ज्येष्ठपुत्रको गृहस्थभार सुप्रत कर आप पौषधशालामै अपनी आत्म रमणतामे रमण करने लगे।
एक समय अर्ध रात्रिके समयमें कामदेवके पास एक मि ध्यादृष्टि देवता उपस्थित हुवा, वह देवता एक पोशाचका रूप जो कि महान भयंकर- देखनेसे ही कायरोंके कलेजा कंपने लग जाता है, एसा रौद्र रूप वैक्रियलब्धिसे धारण कर जहांपर कामदेव अपनी पौषधशाला में प्रतिमा ( अभिग्रह ) धारण कर बैठे थे, यहांपर आया और बडे ही क्रोधसे कुपित हो, नैत्रोंको लाल बनाये और निलाडपर तीनशल करके बोलता हुवा कि भो कामदेव! मरणकी प्रार्थना करनेवाले, पुन्यहीन कालीचतुर्दशी के दिन जन्मा हुवा, लक्ष्मी और अच्छे गुनरहित तुं धर्म पुन्य स्वर्ग और मोक्षका कामी हो रहा है। इन्होंकी तुझे पीपासा लग रही है । इस बातकी ही तुं आकांक्षा रख रहा है परन्तु देख ! आज तेरेको तेग धर्म जो शील व्रत पञ्चखाण पौषध और तुमारी प्रतिज्ञासे