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नाने मुझे कीसकुमौत मारेगा वास्ते पीच्छी हटती हुइ अपने स्थान चली गइ । बस, रेवंतीको सात रात्री उक्त रोग हो के काल कर लोलुच पात्थडे में चौरासी हजार वर्षकी स्थितिघाले नैरियापने नारकीमें उत्पन्न होना ही पडा।
भगवान वीरप्रभु राजग्रह नगरके गुणशीलोद्यानमें पधारे राजादि वन्दनको आये, भगवानने धर्मदेशना दी। भगवान गौनम स्वामीको आमन्त्रण कर कहते हुवे कि हे गौतम ! तुम महाशतक श्रावकके पास जावों और उन्होंको कहो कि अनशन किये हुवेको सत्य होने पर भी परमात्माको दुःख हो एसी कठोर भाषा बोलनी तुमको नहीं कल्प और तुमने रेवंती भार्याको कठोर शब्द बोला है वास्ते उन्हीकी आलोचना प्रतिक्रमण कर प्रायश्चित ले अपनी आत्माको निर्मळ बनावो। गौतमस्थामीने भगवानके बचनोंको सविनय स्वीकार कर वहांसे चलके महाशतक श्रावकके पास आये। महाशतक, भगवानगौतमस्यामीको आते हुवे देख सहर्ष वन्दन नमस्कार किया । गौतमस्वामीने कहा कि भगवान वीर प्रभु मुझे आपके लीये भेजा है वास्ते आपने रेवंतीको कठोर शब्द कहा है इसकी आलोचना करो। महाशतकने आलोचन कर प्रायश्चित लेके अपनी आत्माको निर्मल बनाके गौतमस्वामी को धन्दन नमस्कार करी फीर गौतमस्वामी मध्य बजार होके भगवानके पास आये। भगवान फीर वहांसे विहार कर अन्य क्षेत्रमें गमन करते हुवे।
महाशतक श्रावक एक मासका अनशन कर अन्तिम स माधिपूर्वक काल कर सौधर्म देवलोकके अरुणवतंसिक वैमानमें च्यार पल्योपम स्थितिवाले देवता हवा, वहांसे आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्रमें मोक्ष जावेगा । इतिशम ।