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श्रीखंडभोक्ता! आपके लघु बन्धव होगा परन्तु बलभावसे मुक्त होके श्री नेमिनाथ भगवानके पास दीक्षा लेगा। दोय तीनवार एसा कहके देव नीज स्थान चला गया। श्री कृष्ण पौषद पार माताजी पास आके कह दीया कि मेरे लघु बन्धध होगा तदनंतर श्रीकृष्ण अपने स्थान पर चले गये। - देवकी राणीने एक समय अपने सुखसेजाके अन्दर सुती हुए सिंहका स्वप्ना देखा । तदनुसार नव मास प्रतिपूर्ण साडा सात रात्री वीत जाने पर गजके तालव, लाखकेरस, उदय होता सूर्य के माफीक पुत्रको जन्म दीया. सर्व कार्य पूर्ववत् कर कुमरका नाम “गजसुकुमाल" दे दीया। देवकी राणीने अपने मनके मनोरथोंको अच्छी तरह पूर्ण कर लीया । गजसुकुमाल ७२ कलामें प्रवीण हो गया, युवक अवस्था भी प्राप्त हो गइ।... . द्वारका नगरी में सोमल नामका ब्राह्मण जिसको सोमश्री नामको भाके अंगसे सोमा नामकी पुत्री उत्पन्न हुइ थी वह सोमा युवावस्थाको धारण करती हुइ उत्कृष्ट रुप जोबन लावण्य चतुरता को अपने आधिन कर रखा था. एक समय सोमा स्नानमन्जन कर वबाभूषण धारण कर बहुतसे दातीयोंके साथ राजमार्गमे कीडा कर रही थी।
द्वारका उद्यानमें श्रीनेमिनाथ भगवान पधारे। खबर होने पर नगरलोक वन्दनको जाने लगे। श्रीकृष्ण भी बडे ठाठसे हस्ती पर आरूढ हो गजसुकुमालको अपने गोदके अन्दर बेठाके भगवान को वन्दन करने को जा रहा था।
रस्तेमें सोमा खेल रही थी उन्हीका रूप जोबन लावण्य देख विस्मय हो श्री कृष्णने नोकरोंसे पुछा कि यह कीसकी