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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पु. नं. ६१ श्री कक्कसूरीश्वर सदगुरुभ्यो नमः ।
अथ श्री शीघ्रबोध भाग १८ वां
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श्रीसिद्धसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः
अथश्री निरयावलिका सूत्र. ( संक्षिप्त सार)
-*Okeपांचमा गणधर सौधर्मस्वामि अपने शिष्य जम्बुप्रते कह रहे है कि हे चीरंजीव जम्बु ! सर्वज्ञ भगवान वीरप्रभु निरयाघलिका सूत्रके दश अध्ययन फरमाये है वह मैं तुझ प्रति कहता हुँ ।
इस जम्बुद्विपमें भारतभूमिके अलंकाररूप अंगदेशमें अलकापुरी सदृश चम्पा नामकि नगरी थी. जिस्के बाहार इशानकोनमे पुर्णभद्र नामका उद्यान. जिसके अन्दर पुर्णभद्र यक्षका यक्षायतन. अशोकवृक्ष और पृथ्वीशीलापट्ट. इन सबका वर्णन 'उववाद सूत्र' में सविस्तार किया हुषा है शास्त्रकारोंने उक्त सूत्रसे देखनेकि सूचना करी है।