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१०६ निर्धानार्थ काउस्सग्ग कर धन्ना मुनिका वस्त्रपात्र लेके भगवानके पास आये वस्त्रपात्र भगवानके आगे रखके बोले कि हे भगवान आपका शिष्य धन्ना नामका अनगार आठ मासकि दीक्षा एक मासका अनसन कर कहां गया होगा?
भगवानने कहा कि मेरा शिष्य धन्ना नामका अनगार दुष्कर करनी कर नव मासकि सर्व दीक्षा पाल अन्तिम समाधी पुर्वक काल कर उर्ध्व सर्वार्थसिद्ध नामका महा वैमानमें देवता हूवा है । उसकी तेतीस सागरोपमकि स्थिति है।
गौतमस्वामिने प्रश्न किया कि हे भगवान धन्ना नामका देव देवलोकसे चवके कहां जावेगा ?
भगवानने उत्तर दीया। महाविदेहक्षेत्रमें उत्तम जातिकुलके अन्दर जनम धारण करेगा वह कामभोगसे विरक्त होके और स्थिवरोंके पास दीक्षा लेके तपश्चर्यादिसे कर्मोका नाश कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगा। इति तीसरे वर्गका प्रथम अध्ययन समाप्तं ।
इसी माफीक सुनक्षत्र अनगार परन्तु बहुत वर्ष दीक्षा पाली सर्वार्थसिद्ध वैमानमें देव हुवे महाविदेहक्षेत्रमे मोक्ष जावेगा। इति ॥२॥
इसी माफीक शेष आठ परन्तु दो राजगृह, दो श्वेतंबिका, दो वाणीया ग्राम, नवमो हथनापुर दशमो राजग्रह नगरके ( ३ ) ऋषिदाश (४) पेलकपुत्र (५) रामपुत्रका (६) चन्द्रकुमार (७) पोष्टीपुत्र (८) पेढालकुमार (९) पोटिलकुमार (१०) वहलकुमारका।
धनादि नव कुमारोंका महोत्सव राजावोंने ओर बहलकु. मारका पिताने कीयाथा।