________________
૮૮
( ८ ) आठवा वर्गके दश अध्ययन है ।
चम्पानगरी पुर्णभद्र उद्यान कोणक नामका राजा राज कर रहाथा। उसी चम्पानगरीमें श्रेणीक राजाकि राणी कोणक राजाकि चुलमाता 'कालीनामकि राणी निवास करतीथी.
भगवान वीरप्रभुका आगमन हुवा नन्दाराणीकि माफीक कालीराणी भी देशना सुन दीक्षा ग्रहन कर इग्यारे अंग ज्ञानाभ्यासकर चोत्थ छठ्ठादि विचित्र प्रकारले तपश्रर्याकर अपनि आमाकों भागती हुइ वीचर रहीथी।
एक समय काली साध्विने आर्य चन्दन बाला साध्विको वन्दन कर अर्ज करी कि आपकी रजा हो तो में रत्नावली तप प्रारंभ करु ? जहासुखम् ।
आर्या चन्दन बालाजीकी आज्ञा होनेसे काली साध्वीने रत्नावली तप शरु किया । प्रथम एक उपवास किया पारणेके दिन " सव्वकामगुण" सर्व विगइ अर्थात् दूध दहीं घृत तैल मीठा इसे जेसे मीले वेसाही आहारसे पारणो कर सके । सब पारणेमें एसी विधि समझना । फिर दोय उपवास कर पारणो करे। फिर तीन उपवास कर पारणो करे बादमें आठ छठ ( बेला ) करे पारणो कर, उपवास करे, पारणो कर, छठ करे, पारणो कर अठम करे, पारणो कर च्यारोपास, पारणो कर पांचोउपवास पारणो कर छ उपवास, पारणो कर सात उपवास, पारणो कर आठ उपवास, एवं नव दश इग्यारा बारह तेरह चौदा पन्दर सोला उपवास करे, धारण कर लगता चौतीस छठ करे, पारणो कर फीर
१ कालीराणीका विशेषाधिकार निरयावलिका सूत्रकि भाषामें लिखा जावेगा ।