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के अनसनके अन्तमें काल कर उर्ध्व सौधर्मइशान यावत् अच्युत देवलोकके उपर नव ग्रीवैक से भी उर्ध्व विजय नामका वैमान में उप्तन्न हुवे । जब स्थिवर भगवान जालीमुनि काल प्राप्त हुवा जानके परि निर्वणार्थ काउस्सगकीया ( जाली मुनिके अनसनकि अनुमोदन ) काउस्सगकर जालीमुनिका वस्त्र पात्र लेके भगवान के समिप आये वह वस्त्र पात्र भगवान के आगे रखा गौतम स्वा
प्रश्न किया है भगवान ! आपका शिष्य जाली अनगार प्रकृतिका भद्री विनित यावत् कालकर कहां पर उत्पन्न हुवा होगा भगवान ने उतर दीयाकि मेराशिष्य जाली मुनिं यावत् विजय
मानके अन्दर देव पणे उप्तन्न हुवा है उन्होंकी स्थिति बत्तीस सागरोपमकि है । गौतमस्वामिने पुच्छाकि हे भगवान जालिदेव विजय वैभानसे फोर कहां जावेगा ? भगवानने उत्तर दीयाकि हे गौतम! जालीदेव. वहांसे कालकर महाविदेह क्षेत्रमें उत्तम जाति कुल के अन्दर जनम लेगा वहांभी केवल परुपित धर्मका सेवनकर दीक्षाले केवलज्ञान प्राप्तकर मोक्ष जावेगा इति प्रथमाध्ययन समाप्तं ।
इसी माफीक ( २ ) मयालीकुमर ( ३ ) उवघालीकुमर (४) पुरुषसेन ( ५ ) वीरसेन ( ६ ) लठदन्त ( ७ ) दीर्घदंत यह सातों श्रेणिक राजाकि धारणी राणीके पुत्र है और ( ८ ) वहेलकुमर (९) विहासे कुमार यह दोय श्रेणकराजाकि चलना राणी के पुत्र है (१०) अभयकुमार श्रेणक राजाकि नन्दाराणीका पुत्र है एवं दश राजकुमर भगवान वीरप्रभु पासे दीक्षा ग्रहन करी थी ।
इग्यारा अंगका ज्ञानाभ्यास । पहले पांच मुनियोंने १६ वर्ष दीक्षा पाली क्रमसे छठ्ठा, सातवां, आठवां, बारह वर्ष दीक्षा पाली नववां दशवां पाँच वर्ष दीक्षा पाली । गतिपहला विजयवैमान, दुसरा विजयन्त वैमान, तीसरा जयन्त