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वार्थसिद्ध पैमानमें देवपणे उत्पन्न हुवे वहांसे तेरहही देव एक भव महाविदेह क्षेत्रमें करके दीक्षा पाके केवलज्ञान प्राप्त कर मो. क्षमें जावेगा । इति दुसरे वर्गके तेरवाध्ययन समाप्तम् । २।
इति दुसरा वर्ग समाप्तम् ।
(३) तीसरे वर्गके दश अध्ययन है ।
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प्रथम अध्ययन-काकंदी नामकी नगरी सहस्राम्रवनोद्यान जयशत्रु नामका राजा । सबका वर्णन पूर्ववत् समझना । काकंदी नगरीके अन्दर बडीही धनाढ्य भद्रा नामकी सार्थवाहिणी वसती थी वह नगरीमें अच्छी प्रतिष्ठित थी। उस भद्रा शेठाणीके एक स्वरूपवान धन्नो नामको पुत्र थो, उस्के कला आदिका वर्णन महाबलकुमारकी माफीक यावत् बहोंतेर कलामें प्रविन युवक अवस्थाको प्राप्त हो गया था। जब भद्रा शेठाणीने उस कुमारको बत्तीस इप्भशेठोंकी कन्यावोंके साथ विवाह करने का इरादासे बत्तीस सुन्दराकार प्रासाद बनाके विचमे धन्नाकुमारका महेल बना दिया। उस प्रासाद महेलोंके अन्दर अनेक स्थंभ पुतलीयो तोरणादिसे अच्छे शोभनिय बना दीया था उसी प्रासादोंका शिखरमानो गगनसे बातीही न कर रहा हो अर्थात् देवप्रासादके माफीक अच्छा रमणीय था।
बत्तीस इभशेठोंकी कन्यावों जो कि रूप, यौवन, लावण्य, चातुर्यता कर ६४ कलावोमें प्रविन कुमारके सःश वयवाली बत्तीस कन्यावोंका पाणीग्रहण एकही दिनमे कुमारके साथ करा दिया उन्ही बत्तीस कन्यावोंका मातापिता अपरिमित दत दायजो दियो थो यावत् बत्तीस रंभावोंके साथ धन्नोकुमार मनुष्य