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सुसराजी शिरपर एक नवीन पेचाही बंधा रहा है। फीर स्मशानमे खेर नामका काष्ट जल रहाथा उन्हीका अंगार लाके वह अग्नि गजसुकुमालके शिरपर धर आप वहांसे चला गया । गजमुकमालमुनिको अत्यन्त वेदना होनेपरभी सोमल ब्राह्मण पर लगारभी द्वेष नही कीया । यह सब अपने किये हुवे कमेकाही फल समझके आनन्दके साथ करजाको चुका रहाथा । एसा शुभा ध्यवसाय, उज्वल परिणाम, विशुद्ध लेश्या, होनेसे च्यार घातीयां कर्माका क्षयकर केवलज्ञान प्राप्ती कर अन्तगढ केवली हो अनन्ते अव्यावाध शास्वत सुखोंमे जाय विराजमान होगये अर्थात गजसुकुमालमुनि दीक्षा ले एकही रात्रीमें मोक्ष पधार गये। नजीकमें रेहनेवाले देवतावाने वडाही महोत्सव कीया पंचवर्णके पुष्पों आदि ५ द्रव्यकि वर्षा करी और वह गीत-गान करने लगे।
इधर सूर्योदय होतेही श्रीकृष्ण गज असवारीकर छत्र धरावाते चमर उढते हुवे बहुतसे मनुष्योंके परिवारसे भगवानको वंदन करनेको जा रहाथा। रहस्तेम एक वृद्ध पुरुष बडी तकलीफके साथ एकेक ईठ रहस्तेसे उठाके निज घरमें रखते हुवेकों देखा। कृष्णको उन्ही पुरुषकी अनुकम्पा आइ आप हस्तीपर रहा हुवा 'एक ईट लेके उन्ही वृद्ध पुरुषके घरमें रखदी एसा देखके सर्व लोकोंने एकेक ईट लेके घरमें रखनेसे वह सर्व ईटोंकी रासी एकही साथमें घरमें रखी गई फीर श्री कृष्ण भगवानके पासे जाके वन्दन नमस्कार कर इधर उधर देखते गजसुकुमालमुनि देखनेमे नही आया तब भगवानसे पुच्छा कि हे भगवान मेरा छोटाभाइ गजसुकुमाल मुनि कहां है मे उन्होंसे वन्दन करू ?
भगवानने कहाकि हे कृष्ण! गजसुखमालने अपना कार्य सिद्ध कर लिया। कृष्ण कहाकि केसे । भगवान ने कहाकि गज