________________
मदिरा प्रसंग द्विपायमके कारण अनिके योगसे द्वारिका नष्ट होगा। . यह सुनके वासुदेवने बहुत पश्चाताप किया और विचारा कि धन्य है जालीमयाली यावत् दृढ नेमिको जो कि राज धन अन्तेवर त्यागके दीक्षा ग्रहण करी । में जगतमें अधन्य अपुन्य अभाग्य जो कि राज अन्तेवरादि कामभोगमें गृहीत हो रहा है ताके भगवान के पास दीक्षा लेने में असमर्थ हुँ ।
कृष्णके मन की बातोंको ज्ञानसे जानके भगवान बोले कि क्युं कृष्ण तेरा दोलमें यह विचार हो रहा है कि में अधन्य अपुन्य हुं यावत् आर्तध्यान करता है क्या यह बात सत्य है? कृष्णने कहा हाँ भगवान सत्य है । भगवानने कहा हे कृष्ण ! यह बात न हुइन होगा कि वासुदेव दीक्षा ले। कारण सब वासुदेव पुर्व भव निदान करते है उस निदानके फल है कि दीक्षा नहीं ले सके।
कृष्णने प्रश्न किया कि हे भगवान! में जोआरंभ परिग्रह राज अन्तवरमें मुर्छित हुवा हुं तो अब फरमाइये मेरी क्या गति होगी? ___ भगवानने उत्तर दीया कि हे कृष्ण यह द्वारिका नगरी मदिरा अग्नि और द्विपायणके योगसे विनाश होगी, उसी समय मातपिताको निकालनेके प्रयोगसे कृष्ण और बलभद्र द्वारिकासे दक्षिणकी वेली सन्मुख युधिष्ठिर आदि पांच पांडवों की पंडु मथुरा होके कसुंबी वनमें वड वृक्षके नीचे पृथ्वीशीला पटके उपर पीत वस्त्रसे शरीरको आच्छादित कर सुवेगा, उस समय जराकुमार तीक्ष्ण बाण वाम पांवमें मारनेसे काल कर तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वीमें जाय उत्पन्न होगा।
यह बात सुन कृष्णको बडा ही रंज हुषा कारण में एसी