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(२) मयालीकुमर (३) उवपायालीकुमर (१) पुरुषसेन (५) वारिसेन यह पांचो वासुदेव धारणीसुत (६) प्रजुनकुमार परन्तु कृष्णराजा रूक्मिणी सुत (७) सम्बुकुमार परन्तु कृष्णराजा जंबुवन्ती राणीका पुत्र (८) अनिरुद्धकुमर परन्तु प्रजुन पिता वेदरवी माता (९) सत्यनेमि (१०) द्रढनेमि परन्तु समुद्रविजय राजा सेवादेवीके पुत्र है । यह दशों राजकुमार पचास पचास अन्तेवर त्याग बावीशमा तीर्थंकर पासे दीक्षा द्वादशांगका ज्ञान सोले वर्ष दीक्षा शव॑जय तीर्थ पर एक मासका अनशन अन्तिम केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये इति चोथो वर्ग दश अध्ययन समाप्त।
(५) पांचमा वर्गके दश अध्ययन.
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द्वारिका नगरी कृष्णवासुदेव राजा राज कर रहा था यावत् पुर्षकी माफक समझना । कृष्ण राजाके पनावती नामकी अग्र महिषी राणी थी । स्वरुप सुन्दराकार यावत् भोगविलास करती आनन्दमे रहेती थी।
श्रीनेमिनाथ भगवानका आगमन हुवा कृष्णादि बडे ही ठाठ से वन्दन करनेको गये पद्मावती राणी भी गइ । भगवानने धर्मदेशना फरमाइ । परिषदा श्रवण कर यथाशक्ति त्याग वैराग कर स्वस्वस्थाने गमन कीया, कृष्ण नरेश्वर भगवानको वन्दन नमस्कार कर अर्जकरी कि हे भगवान सर्व वस्तु नाशवान है तो यह प्रत्यक्ष देवलोक सहश द्वारिका नगरीका विनाश मूल कीस कारण से होगा?
भगवानने फरमाया हे धराधिप द्वारिका नगरीका विनाश