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जरीमें रहते थे। रुखमणी आदि सोलाहजार अन्तेवर तथा अनेक सेना आदि अनेक हजारों गणकापों और भी बहुतसे राजेश्वर युगराजा तालंधर मांडबी कोटंबी शेठ इप्भशेठ सेनापति मत्थयहा आदि नगरीके अन्दर आनन्दमें निवास करते थे ।
उसी द्वारकानगरीके अन्दर अन्धकावृष्णि राजा अनेक गुणोंसे शोभित तथा उन्होंके धारणी नामकी पट्टराणी सर्वांग सुन्दराकार अपने पतिसे अनुरक्त पांचेन्द्रियोंका सुख भोगवती थी। - एक समय कि बात है कि धारणी राणी अपने सुने योग्य सेजामे सुती थी आधी रात्रीके रखतमें न तो पूर्ण जगृत है म पुर्ण निद्रा में है एसी अवस्था राणीने एक सुपेत मोत्योंके हारके माफीक सुपेत । सिंह आकाशसे उत्तरता हुषा और अपने मुहमें प्रवेश होता हुवा स्वप्न में देखा । एसा स्वप्न देखते ही राणी अपनि सेजासे उठके जहां पर अपने पतिकि सेजा थी यहांपर आई । राजाने भी राणीका बडा ही सत्कार कर भद्रासन पर बेठनेकि आज्ञा दि । राणी भद्रासन पर बेठी और समाधि के साथ बोली के हे नाथ! आज मुझे सिंहका स्वप्न हवा है इसका क्या फल होगा । इस बातको ध्यानपूर्वक श्रवण कर बोला कि है प्रिया! यह महान् स्वप्न अति फलदाता होगा । इस स्वप्नसे पाये जाते है कि तुमारे नब मास परिपूर्ण होनेसे एक शूरवीर पुत्ररत्नकी प्राप्ति होगी। राणीने राजाके मुखसे यह सुनके दोनों करकमल शिरपर चढाके बोली "तथास्तु" राजाकी रजा होनेसे राणी अपने स्थानपर चली गइ
और विचार करने लगी कि यह मुझे उत्तम स्वप्न मीला है अगर . १ पति और पत्नीकी सजा अलग अलग थी तबी ही आपस आपसमें स्नेहभावकी हमेशों वृद्धि होती थी नहीं तो " अति परिचयादवज्ञा "