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कर कुल सोला वर्ष दीक्षा पालके अन्तिम श्रीशत्रुजय तीर्थ पर एक मासका अनशन कर अन्तमें केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षमें पधार गये इति द्वितीवर्गके आठ अध्ययन समाप्त। .
(३) तीसरा वर्गके तेरह अध्ययन है।
(प्रथमाध्ययन) भूमिके भूषणरुप भद्रलपुर नामका नगर था। उस नगरके इशान कोणमे श्रीवन नामका उद्यान था और जयशत्रु नामका राजा राज कर रहा था वर्णन पूर्वकी माफीक समझना। उसी भद्रलपुर नगरके अन्दर नाग नामका गाथापति निवास करता था वह बडाही धनाढ्य और प्रतिष्ठित था जिन्होंके गृहश्रृंगाररुप सुलसा नामकी भार्या थी वह सुकोमल ओर स्वरुपवान थी। पतिकी आज्ञा प्रतिपालक थी। नागगाथापति और सुलसाके अंगसे एक पुत्र जनमा था जिसका नाम " अनययश" दीया था वह पुत्र पांच धातृ जेसे कि (१) दुध पीलानेवाली (२) मजन करानेवाली (३) मंडन काजलकी टीकी वस्त्राभूषण धारण करानेवाली (४) क्रीडा करानेवाली (५) अंक-एक दुसरेके पास लेजानेवाली इन्ही पांचो धातृ मातासे सुखपुर्वक वृद्धि जेसे गिरिकंदरकी लताओं वृद्धिको प्राप्ति होती है एसे आठ वर्ष निर्गमन होने के बाद उसी कुमरको कलाचार्यके वहां विद्याभ्यासके लीये भेजा आठ वर्ष विद्याभ्यास करते हुवे ७२ कलामें प्रवीण हो गये नागगाथापतिने भी कलाचार्यको बहुत द्रव्य दीया जब कुमर १६ वर्षकी अवस्था अर्थात् युवक वय प्राप्त हुवा तब मातापिताने वत्तीस