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अब निद्रा लेने से कोइ खराब स्वप्न होगा तो मेरा सुन्दर स्वप्नका फल चला जावेगा वास्ते अब मुझे निद्रा नहीं लेनी चाहिये । किन्तु देवगुरुका स्मरण ही करना चाहिये। एसा ही कीया।
इधर अन्धकवृष्णि राजा सूर्योदय होते ही अनुचरोसें कचेरोकी अच्छी श्रृंगारकी सजावट करवाके अष्ट महानिमित्तके जाननेवाले सुपनपाठकोंको बुलवाये उन्होंका आदर सत्कार पूजा करके जो धारणी राणीको सिंहका स्वप्न आया था उन्होंका फल पुच्छा | स्वप्नपाठकोंने ध्यानपुर्वक स्वप्नको श्रवण कर अपने शास्त्रोंका अवगाहन कर एक दुसरेके साथ विचार कर राजासे निवेदन करने लगे कि हे धराधिप ! हमारे स्वप्नशास्त्रमें तीस स्वप्न महानू फल और बेंयालीस स्वप्न सामान्य फलके दाता है एवं सर्व बहुत्तर स्वप्न है जिसमें तीर्थंकर चक्रवर्त्तिकी मातावों तीस महान् स्वप्नसे चौदा स्वप्न देखे । वसुदेवकी माता सात स्वप्न देखे । बलदेवकी माता च्यार और मंडलीक राजाकी माता एक स्वप्न देखे । हे नाथ ! जो धारणी राणी तीस महान स्वप्न के अन्दर से एक महान् स्वप्न देखा है तो यह हमारे शाant बात निःशंक है कि धारणी राणीके गर्भदिन पुर्ण होनेसे महान शूरवीर धीर अखिल पृथ्वी भोक्ता आपके कुलमें तीलक ध्वज सामान्य पुत्ररत्नकी प्राप्ति होगी । यह बात राणी धारणी भी कीनात अन्तरमें बैठी हुई सुन रही थी । राजा स्वप्नपाठकोंकी बात सुन अति हर्षित हो स्वप्नपाठकोंको बहुतसा द्रव्य दीया तथा भोजन कराके पुष्पोंकी माला विगेरा देके रवाना किया । बादमें राजाने राणीसे सर्व बात कही, राणी सहर्ष बात की स्वीकार कर अपने स्थान में गमन करती हुई ।
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राणी धारणी अपने गर्भका पालन सुखपूर्वक कर रही है।