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(८) आठवा अध्ययन महाशतकाधिकार । ..
राजगृह नगर, गुलशीला उद्यान, श्रेणिक राजा, उन्ही नग रमें महाशतक गाथापति बडा ही धनान्य था. जिन्होंके रेवंती आदि तेरा भार्यावों थी। चौवीस क्रोडका द्रव्य था, जिन्हों में आट कोड धरतीमें, आठ क्रोड चैपारमें, आठ क्रोड घरविखरामें और आठ गोकुल अर्थात असी हजार गायों थी । और महाश. तकके रेवंती भार्याके बापके घरसे आठ क्रोड सोनैया और असी हजार गायो दान में आइ थी तथा शेष बारह भार्यावकि बापके घ. ग्से एकेक क्रोड सोनैया और दश दश हजार गायो दानमें आड़ श्री : महाशतक नगरमें एक प्रतिष्ठित माननिय गाथापति था। - भगवान वीरप्रभुका पधारणा राजगृह नगरके गुणशील उ. द्यान में हुवा । श्रेणिक राजा तथा प्रजा भगवानको वन्दन करनेको गये।महाशतक भी बन्दन निमित्त गया। भगवानने देशना दी। महाशतकने आनन्दकी माफीक सम्यक्त्व मूल बारह व्रतोच्चारण कीया, परन्तु चौवीस क्रोड द्रव्य और तेरह भावों तथा कांसीपात्रमे द्रव्य देना पीच्छा दुगुनादि लेना, एसा वैपार रखा. शेष त्याग कर जीवादिपदार्थका जानकार हो अपनि आत्मरमणताक अन्दर भगवानकी आज्ञाका पालन करता हुवा विचरने लगा।
.. एक समय रेवंती भार्या रात्रि समय कुटुम्ब जागरण करती एमा विचार किया कि इन्ही बारह शोक्योंके कारणसे मैं मेरा पति महाशतकके साथ पांचो इन्द्रियोंका सुख भोगविलास स्वतंप्रतासे नहीं कर सकुं, वास्ते इन्ही बारह शोक्योंको. अग्निविष तथा शत्रके प्रयोगसे नष्ट कर इन्होंके एकेक क्रोड सोनैया तथा