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हुवा। तब देवताने कहा कि अगर तु धमैं नहीं छोडेगा तो मं आज तेरे ज्येष्ठ पुत्रको तेरे आगे मारके खंड २ कर रक्त, मेद, और मांस तेरे शरीरपर लेपन कर दूंगा, और उसका शेषमांसका शुला बनाके तैलकी कडाइमें तेरे सामने पकाउंगा। उसको देखके तूं आर्तध्यान कर मृत्यु धर्मको प्राप्त होगा । तब भी चुलनिपिता क्षोभायमान न हुवा । देवताने एसाही अत्याचार कर देखाया। पुत्रका तीनतीन खंड कीया। तथापि चुलनीपिताने अपने आत्मध्यान में रमणता करता हुवा उस उपसर्गको सम्यक् प्रकार से सहन किया। क्योंकि देवताने धर्म छोडानेका साहस किया था । पुत्रादि अनन्तिवार मीला है वह भी कारमा संबंन्ध है । धर्म है सो निजवस्तु है । चुलनिपिताको अक्षोभ देख देवताने पहेले की माफीक कोपित होके दुसरे पुत्रको भी लाके खंड २ किया, तो भी चुलनिपिता अक्षोभ होके उपसर्गको सम्यकू प्रकारसे सहन किया। तीसरी दफे कनिष्ट ( छोटा ) पुत्रको लाके उसका भी खंड २ किया । तो भी चुलनिपिता अक्षोभ ही रहा ।
देवने कहाकि हे चुलनिपिता ! अगर तुं धर्म नहीं छोडेगा तो अब मैं तेरी माता जो भद्रा तेरे देवगुरु समान है उसको मैं तेरे आगे लाके पुत्रोंकी तरह अबी मारुंगा । यह सुनके चुलनिपिताने सोचा कि यह कोइ अनार्य पुरुष ज्ञात होता है कि जिन्होंने मेरे तीन पुत्रोंकों मार डाला । अब जो मेरे देवगुरु समान और धर्ममें सहायता देनेवाली भद्रा माता है उसको मारनेका साहस करता है तो मुझे उचित है कि इस अनार्य पुरुषको मैं पकड लूं। ऐसा विचार कर पकडनेको तैयार हवा । इतने में देवता आकाशमें गमन करता हुवा । और चुलनिपिताके हाथमें एक स्थंभ आगया और कोलाहल हुवा । इस हेतु भद्रा