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प्रस्तावना. प्यारे पाठकन्द ! __ चरम तीर्थंकर भगवान वीर प्रभुके मुखाविदसे फरमाइ हुइ स्याद्वादरूपी भवतारक अमृत देशना जिस्में देवदेवी. मनुष्य आर्य अनार्य पशु पक्षी आदि तीर्यच यह सब अपनि अपनि माषामें समजके प्रतिबोध पाकर अपना आत्मकल्याण करते थे ।
उस वीतराग वाणिको गणधर भगवानोंने अर्ध मागधि भा. पासे द्वादशांगमें संकलित करी थी जीसपर जीस जीस समयमें जीस नीस भाषाकि आवश्यक्ता थी उस उस भाषा (प्राकृत संस्कृत ) में टीका नियुक्ति भाष्य चूर्णि आदिकि रचना कर भव्य मोषोंपर महान उपकार कीया था।
इस समय साधारण मनुष्योंकों वह भाषा भी कठीन होने लग गइ है क्योंकि इस समय जनताका लक्ष हिन्दी भाषाकि तर्फ बढ़ रहा है वास्ते जैनसिद्धान्तोंकि भी हिन्दी भाषा अवश्य होनी चाहिये.
इस उद्देशकि पुरतीके लिये इस संस्थाद्वारा शीघबोध भाग १ से १६ तक प्रकाशित हो चुके है जिसमें श्री भगवती पन्नवणा जैसे महान् सूत्रोंकि भाषा कर थोकडे रूपमें छपा दीया है जो कि ज्ञानाभ्यासीयोंकों बडेही सुगमतासे कण्ठस्थ कर समज. नेमे सुभीता हो गया है।
इस बखत यह १२ बारह सूत्रोंका भाषान्तर आपके कर क. मलोमें रखा जाता है आशा है कि आप इसको आद्योपान्त पढके लाभ उठायेंगे।
इस लघु प्रस्तावनाको समाप्त करते हुवे हम हमारे सुसजमोसे यह प्रार्थना करते है कि आगमोंका भाषान्तर करने में तथा प्रुफ शुद्ध करने में अगर दृष्टिदोष रह गया हो तो आप लोग सुधारके पढ़ें और हमे सूचना करे तांके द्वितीयावृति में सुधारा करा दीया जावेगे-अस्तु कल्याणमस्तु.
'प्रकाशक