________________
- (६७)
(४) लिंग विषय शंका । साधुका वेष वस्त्र पात्र रजोहरणादि उसीकों लिंग केहते है । जिस्मे प्रथम और चरम जिनोंके साधु श्वेतमनोपते स्वल्पमूल्यवाले वस्त्रादि रखते है और बावीस तीर्थकरोंके साधु पांचो वर्णके वस्त्र वह भि अपरिमित स्वल्प व बहुमूल्यवाले भी राख शक्ते है इसका क्या कारण है । दोनो मोक्ष मार्ग साधन करनेकों दीक्षा ली है तो यह अन्तर क्यो ?
समाधान-वावीस तीर्थंकरोंके साधु रूजु ओर प्रज्ञाबान्त होनेसे किसी प्रकारके उपकरण रखनेमें उन्होंको ममत्वभावतृष्ण वृद्धि नहीं होती है और प्रथम तथा चरमजिनोंके साधुवों रूजु नढ, वक्रजढ होनेसे श्वेत मानोपेत आदिका कल्प बतलाया है । वस्त्र पात्रादि है वह मोक्ष मार्ग साधनमें एक निमत्त कारण है । न कि उपाधान कारण।
(२) प्रवचन ( महाव्रत ) विषय शंका । बावीस तीर्थयरों के साधुओंके च्यार महाव्रत और प्रथम, चरम, जिनोंके साधुओंके पांच महाव्रत । जब सर्वज्ञ पुरुषोंने मोक्ष मार्ग साधनके लियेव्रत बतलाया है तो इस्में दो मत क्यों होना चाहिये। . समाधान-बाविस जिनोंके साधु ऋजु और प्रज्ञावान है उन्होंके लिये च्यार महाव्रत कहनासे वह स्वयं हि समझ सके है कि जब परिग्रहका त्याग कर दीया तब स्त्रितों ममत्वका घर है वह आप हीसे त्याग हो गया, वास्ते इन्होंके च्यार महाव्रत है और शेष ऋजु अढ या वक्र मढ होनेसे अलग अलग कहा है। इसीमें वस्तु तत्वमें भेद नहीं है दोनोंका मतलव एक ही है।