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समाधान-सिद्धसेन दिवाकर वीरात् पांचमि शताब्दीमें हुवे है और जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण वीरत् दशवी शताब्दीमें हुवे है वास्ते आचार्योका क्षोपशम जुदा जूदा है परन्तु राग द्वेषको क्षय किये हुवे तीर्थंकरोंका मत एक ही होता है केवलज्ञान केवल दर्शन यूगपात् समय होना यह भी शास्त्रकारोंका मत्त है परन्तु इसमें कोनसा नयकी अपेक्षा है तथा केवलज्ञान दर्शन भिन्न समय यह भी शास्त्रकारोंका मत्त है ? "यत् ज समय जाणइ नो तं समय पासइ " इस्मे कोनसी नयकी अपेक्षा है उसी अपेक्षाकों समझाना गीतार्य बहु श्रुतिजी महाराजका काम है इस विषयमें प्रज्ञापना सूत्र पासणिय पदमें खुलासा अच्छा है वहासे देखना चाहिये।
(१०) भंगा विषय शंका-हिंसा और अहिंसाका शास्त्रका. रोंने च्यार मांगा बतलाया है यथा
(१) द्रव्यसे हिंसा और भावसे अहिंसा ।
(२) भावसे हिंसा और द्रव्यसे अहिंसा . (३) द्रव्यसे अहिंसा और भावसे मि अहिंसा
(४) द्रव्यसे हिंसा और मावसे भि हिंसा - प्रथम और दुसरे भागोंमें शांका उत्पन्न होती है।
समाधान-(१) जो मुनि इर्या समितिसे यत्ना पूर्वक चलतों मगर कोई जीव मर भी जावे तो द्रव्यहिंसा है परन्तु परिणाम शुद्ध होनेसे भावसे हिंसा नहीं है । (२) जो मुनि मनोपयोगसे चलतों जीव नहीं मरे तो भि द्रव्यसे अहिंसा है। परन्तु निनाज्ञाका अनादर और उपयोग सुन्य अयत्ना होनेसे भावसे हिंसाहीका भागी है शेषदोय भोग सुगम् है )
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