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फरमाते है या न ह सत्य है एसा कहनेसे निनाज्ञाका बाराधीक हो सक्ते है ? ___ (उ०) हा गौतम पूर्ववत् "तमेवसञ्चं" कहदेनेसे आराधी हो जाता है क्युकि नेमका अन्तकारण श्रद्धा निनवचनोंपर मजबुत है और यह केहना भवान्तरमें भी आराधीपदकों साहिक होगा वास्ते जहातक बने वहातक तो वस्तुतत्त्व समझनेका प्रयत्न करना अगर न बने तो “तमेवसच्च" कहदेना चाहिये। एसेही हृदयमे धारना चाहिये एसही करना। एसाही मन स्थिरभूत रखनासे यावत् निनाज्ञाका आराधी हो सकते है।
(प्र०) हे दयानिधि ! जीव कांक्षामोहनिय क्यों बान्धता है। .
(उ०) हे गौतम । कांक्षामोहनिय कर्मबान्धनमे मूल हेतु प्रमाद है और इन्ही के अन्दर योगोंका निमत्तकारण आवश्य मीलता है । यहापर मौख्यतामें प्रमादको लिया है। क्युल मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय, और योगके आगमनमें मौख्य कारण प्रमादही है वास्ते मिथ्यात्वादिकों गोगतामे रख प्रमादकों मौख्यता बतलाया है।
(प्र) प्रमादकों उत्पन्न करनेवाला कौन है ? ... (ड) योग है-मन वचन कायाके योगोंकि अशुभ प्रवृत्ति अर्थात् खाना पोना भोग विलास सुख शेलीयापना होना यह सब प्रमाद आनेका दरवाना है। . (प) योगोंको कोन प्रेरणा कर वरताते है ।
(उ) वीर्य-यहापर सकरण वीर्य समझना चाहिये। क्युकि वीर्यकी प्रेरणासे योगोंका वैपार होता है।
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