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थोकडा नम्बर १७ श्री भगवतीजी सूत्र शतक र उद्देशा ३
' (कांक्षा मोहनिय )
कांक्षा मोहनिय-जीवके अज्ञानात्मीक मलीन अध्यवशायों, तस्वपर अरूचि मतत्वपर श्रद्धा वस्तुकी वीप्रीत श्रद्धनासे कर्म दलक एकत्र हो आत्म प्रदेशोंपर बन्ध होना इसका नाम कांक्षा मोहनिय है जिस्का भी दोय भेद है (१) चरित्र मोहनिय-चारित्र परिणाम होना न देवे (२) दर्शन मोहमिनय तत्व अरूची, अन्य दर्शनकी अभिलाषा, _ यहांपर शास्त्रका ने दर्शन मोहनियका ही अधिकार बत- . लाया है इस्को मिथ्यात्व मोहनिय भी केहते हैं । . जहां कालकी व्याख्या होती है वहां काल तीन प्रकारके, भूत, भविष्य, और वर्तमान, गीना जाता है परन्तु यहांपर च्यार प्रकारके काल, भूत, भविष्य, वर्तमान और ओध, (समुच्चय ) माना गया है। ... (प्र०) समुच्चय नीव कांक्षा मोहनिय कर्म ओघकालापेक्षा कृत कम है ?
(उ०) हाँ कृत कर्म है। __(प्र०) जीवको आत्म प्रदेशपर कांक्षा मोहनिय कर्मों का दलकलीप्त होता है वह कीस प्रकारसे होता है। — (उ०) जीवोंक अनादिकालसे खीरनीरके माफीक आत्मप्रदेशोंके साथ कर्म परमाणुवोंका बन्ध है, पूर्वकर्म स्थिति परिपक्क