________________
(६८) .माकाशस्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुदगलास्तिकायको प्रदेश
पृच्छामें प्रदेश अनन्त तककी पृच्छा करना, यह निश्चयापेक्ष है वास्ते स्मपूर्ण वस्तुको ही वस्तु कहना चाहिये। . (प्र०) हे मगवान् ! जीव उत्थान, कम्म, वल, वीर्य पुरुषाकार करके आत्मा माव ( उठना, बैठना, हलना, चलना, भोजन करना इत्यादि) जीवको दर्शावे अर्थात् उत्थानादि कर जीवको कृत क्रियामै प्रवृति करावे ।
(८०) हां उत्थानादि सहित जीव आत्मा भाव जीवको प्रवृतावे।
(५०) क्या कारन है ?
(3.) जीव है वह मनन्ते मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान, भवधिमान, मनःपर्यव ज्ञान, केवलज्ञान, मतिमज्ञान, श्रुतिअज्ञान, विभग ज्ञान, चक्षु दर्शन, अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन और केवल दर्शन इन १२ उपयोगोंके प्रत्येक अनन्ता अनन्ता पर्यय है यह जीवका गुण है उसके जारिये जीव उत्थानादि कर जीव भाव दर्शता हुवा क्रिया में प्रवृति करावे।
(प्र०) आकाश कितने प्रकारका है ! " (उ०) आकाश दो प्रकारका है (१) लोकाकाश (१) मलोकाकाश ।
(प्र०) लोकाकाशमें क्या नीव है, जीवके देश है । जीवके प्रदेश हैं । अजीव है अजीवके देश है, अजीबके प्रदेश हैं !
(उ०) जीव है बावत भजीवके प्रदेश हैं। एवं १ बोल हैं। जिसमें जीव है सो एकेन्द्रियसे यावत् पंचेद्रिय और अनेद्रिय है।